हिमाचल यानी कि हिम का आंचल। यह छोटा सा प्रदेश अपनी संस्कृति, खान पान, रहन-सहन, लोगों के स्वभाव और लोगों की कर्मठता को लेकर प्रसिद्ध है। हिमाचल के लोगों में अपने देवी देवताओं के लिए आध्यात्मिक आस्था बस्ती है। यहां पर हर किलोमीटर में मंदिर का निर्माण हुआ है जो ये दर्शाता है कि यहां के लोग कितने अध्यात्मिक हैं और यही कारण है कि इसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहां के परिदृश्य की बात करें तो ये मनमोहक है और पूरे राज्य में सौंदर्यता की भरमार है।
राज्य की लगभग 96% आबादी हिंदू है । प्रमुख समुदायों में ब्राह्मण, राजपूत, चौधरी, कन्नेट, राठी और कोली शामिल हैं । जनजातीय आबादी में गद्दी , किन्नौरा, जादुन , पंगावाल और लाहौल शामिल हैं। ठंडे सर्दियों के मौसम में अल्पाइन चरागाह क्षेत्रों से लेकर निचले क्षेत्रों तक मुख्य रूप से हिंदू रहते हैं। किन्नर किन्नौर के निवासी हैं, और वे आम तौर पर बहुपतित्व और बहुविवाह का अभ्यास करते हैं। गुज्जर खानाबदोश लोग हैं जो भैंस के झुंड पालते हैं और मुख्य रूप से मुस्लिम हैं। जो पूरा साल भ्रमण करते हैं और अपनी भैंसे अपने साथ रहते हैं।
संगीत और नृत्य
हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का अभिन्न अंग है। हर राज्य की अपनी नृत्य शैली है। जो इस प्रदेश की सुंदरता में चार चांद लगाती है। हस्तकला भी पूरे देश में मशहूर है इनमें चित्रकला, लकड़ी की नक्काशी, कांगड़ा चित्रकला शैली, पहाड़ी चित्रकला, शामिल है।
अगर संगीत की बात की जाए तो हिमाचल के संगीत में अपना ही आनंद है। संगीत चाहे पुराने हो या फिर नए वो सभी किसी घटना से संबंध रखते हैं जो उस घटना को जीवंत बनाता है। आजकल तो हिमाचली पुराने गानों में कुछ नए गानों को भी मिक्स करने का ज़माना है वैसे गाने भी सुनने में मनमोहन लगते हैं। नृत्य की बात की जाए तो नाटी हमारी संस्कृति का मुख्य अंग है। जो कि हर शादी विवाह, मेले, त्योहार और मिलन कार्यक्रम में लगाई जाती है।
त्योहार और मेले
प्रदेश के त्योहार और मेले हिमाचल की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। ये त्योहार धार्मिक संस्कारों और सांस्कृतिक प्रथाओं से भरे हुए हैं। अन्य सभी भारतीय त्योहारों को मनाने के अलावा, कुछ स्थानीय त्योहारों को भी उसी जीवंतता और उत्सव के साथ मनाया जाता है।
ऊपरी हिमाचल में बिरशी, शांद, फाग, ठिरशू, भूंडा जैसे महायज्ञ मनाए जाते हैं। जिसमें प्रदेश की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है और साथ ही साथ हमारे देवी देवताओं के एकजुटता का संदेश मिलता है। कुछ हेराल्ड ऋतुओं के आगमन, बैसाखी और लोहड़ी जैसे कुछ त्योहार और आदिवासी समुदायों के कुछ त्योहार यहां मनाए जाते हैं। ऊपरी क्षेत्रों में मनाए जाने वाले इन मेलों और त्योहारों में कुल्लू दशहरा , रामपुर की लवी, शिवरात्रि मेला ( मंडी ), शूलिनी मेला (सोलन), मिंजर मेला ( चंबा ), मणि महेश छड़ी यात्रा ( चंबा ), शामिल हैं।
खानपान
हिमाचल प्रदेश के खानपान की बात की जाए तो ऊपरी हिमाचल में मांसाहार ज्यादा पसंद किया जाता है जबकि निकले हिमाचल में जो थोड़ा मैदानी इलाका है ज्यादातर लोग शाकाहार पसंद करते हैं। मांसाहार खाने का भी मुख्य कारण यह है कि बर्फबारी ज्यादा होने के चलते पुराने जमाने में लोग अपने घरों में हीं पशुधन पाला करते थे जैसे की भेड़ बकरियां। भेड़ बकरियों से ऊनी वस्त्र बनाए जाते हैं और और उन बकरियों का सेवन भी किया करते थे। ताकि शरीर में गर्माहट बनी रहे। और विकट से विकट परिस्थिति को झेलने की शक्ति आ सके।
धाम विवाह या अन्य समारोहों में परोसा जाने वाला पारंपरिक भोजन है। सिद्दू , पतरोड़े , चीले , बबरू राज्य के प्रामाणिक नाश्ते के व्यंजन हैं। जिन्हें लोग चाव से खाना पसंद करते हैं। आजकल के युवा वर्गों में हिमाचली पारंपरिक भोजनों के लिए काफी रुझान है और ये सैलानियों को आकर्षित करने का एक अच्छा माध्यम और आए का साधन बन गया है।
विविधता में एकता का प्रतीक हमारा हिमाचल अपनी संस्कृति अपने रहन-सहन और मेलजोल के लिए पूरे विश्व में विख्यात है। प्रधानमंत्री मोदी भी इसे अपना दूसरा घर मानते हैं। इसीलिए हम सभी का ये कर्तव्य बनता है कि हम अपनी संस्कृति को इसी तरह से संजोए रखें। और अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को भी संस्कृति को संजो कर रखने के लिए प्रेरित करें। तभी हमारे इस छोटे से प्रदेश की संस्कृति का परचम पूरे विश्व में लहराएगा।
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