Wednesday, 17 December 2025

पहाड़ों में ⛰️



कौन कहता है कि सुकून है पहाड़ों में

चल चल कर घुटनों का ग्रीस खत्म हो गया है पहाड़ों में

यह ऊंचे ऊंचे पहाड़ और उससे भी ऊंची चोटियां है पहाड़ों में
शहरों को‌ बसाते बसाते खुद सन्नाटा पसर गया है पहाड़ों में
सड़क में गड्ढे या गड्ढे में सड़क है पहाड़ों में?
आज भी अस्तित्व की लड़ाई जारी है पहाड़ों में !

Thursday, 11 December 2025

हिमाचल और संस्कृति



हिमाचल यानी कि हिम का आंचल। यह छोटा सा प्रदेश अपनी संस्कृति, खान पान, रहन-सहन, लोगों के स्वभाव और लोगों की कर्मठता को लेकर प्रसिद्ध है। हिमाचल के लोगों में अपने देवी देवताओं के लिए आध्यात्मिक आस्था बस्ती है। यहां पर हर किलोमीटर में मंदिर का निर्माण हुआ है जो ये दर्शाता है कि यहां के लोग कितने अध्यात्मिक हैं और यही कारण है कि इसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहां के परिदृश्य की बात करें तो ये मनमोहक है और पूरे राज्य में सौंदर्यता की भरमार है।


राज्य की लगभग 96% आबादी हिंदू है । प्रमुख समुदायों में ब्राह्मण, राजपूत, चौधरी, कन्नेट, राठी और कोली शामिल हैं । जनजातीय आबादी में गद्दी , किन्नौरा, जादुन , पंगावाल और लाहौल शामिल हैं। ठंडे सर्दियों के मौसम में अल्पाइन चरागाह क्षेत्रों से लेकर निचले क्षेत्रों तक मुख्य रूप से हिंदू रहते हैं। किन्नर किन्नौर के निवासी हैं, और वे आम तौर पर बहुपतित्व और बहुविवाह का अभ्यास करते हैं। गुज्जर खानाबदोश लोग हैं जो भैंस के झुंड पालते हैं और मुख्य रूप से मुस्लिम हैं। जो पूरा साल भ्रमण करते हैं और अपनी भैंसे अपने साथ रहते हैं। 

संगीत और नृत्य 
हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का अभिन्न अंग है। हर राज्य की अपनी नृत्य शैली है। जो इस प्रदेश की सुंदरता में चार चांद लगाती है। हस्तकला भी पूरे देश में मशहूर है इनमें चित्रकला, लकड़ी की नक्काशी, कांगड़ा चित्रकला शैली, पहाड़ी चित्रकला, शामिल है।
अगर संगीत की बात की जाए तो हिमाचल के संगीत में अपना ही आनंद है। संगीत चाहे पुराने हो या फिर नए वो सभी किसी घटना से संबंध रखते हैं जो उस घटना को जीवंत बनाता है। आजकल तो हिमाचली पुराने गानों में कुछ नए गानों को भी मिक्स करने का ज़माना है वैसे गाने भी सुनने में मनमोहन लगते हैं। नृत्य की बात की जाए तो नाटी हमारी संस्कृति का मुख्य अंग है। जो कि हर शादी विवाह, मेले, त्योहार और मिलन कार्यक्रम में लगाई जाती है। 


त्योहार और मेले
प्रदेश के त्योहार और मेले हिमाचल की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। ये त्योहार धार्मिक संस्कारों और सांस्कृतिक प्रथाओं से भरे हुए हैं। अन्य सभी भारतीय त्योहारों को मनाने के अलावा, कुछ स्थानीय त्योहारों को भी उसी जीवंतता और उत्सव के साथ मनाया जाता है।
ऊपरी हिमाचल में बिरशी, शांद, फाग, ठिरशू, भूंडा जैसे महायज्ञ मनाए जाते हैं। जिसमें प्रदेश की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है और साथ ही साथ हमारे देवी देवताओं के एकजुटता का संदेश मिलता है।  कुछ हेराल्ड ऋतुओं के आगमन, बैसाखी और लोहड़ी जैसे कुछ त्योहार और आदिवासी समुदायों के कुछ त्योहार यहां मनाए जाते हैं। ऊपरी क्षेत्रों में मनाए जाने वाले इन मेलों और त्योहारों में कुल्लू दशहरा , रामपुर की लवी, शिवरात्रि मेला ( मंडी ), शूलिनी मेला (सोलन), मिंजर मेला ( चंबा ), मणि महेश छड़ी यात्रा ( चंबा ), शामिल हैं। 

खानपान  
हिमाचल प्रदेश के खानपान की बात की जाए तो ऊपरी हिमाचल में मांसाहार ज्यादा पसंद किया जाता है जबकि निकले हिमाचल में जो थोड़ा मैदानी इलाका है ज्यादातर लोग शाकाहार पसंद करते हैं। मांसाहार खाने का भी मुख्य कारण यह है कि बर्फबारी ज्यादा होने के चलते पुराने जमाने में लोग अपने घरों में हीं पशुधन पाला करते थे जैसे की भेड़ बकरियां। भेड़ बकरियों से ऊनी वस्त्र बनाए जाते हैं और और उन बकरियों का सेवन भी किया करते थे। ताकि शरीर में गर्माहट बनी रहे। और विकट से विकट परिस्थिति को झेलने की शक्ति आ सके। 
धाम विवाह या अन्य समारोहों में परोसा जाने वाला पारंपरिक भोजन है। सिद्दू , पतरोड़े , चीले , बबरू राज्य के प्रामाणिक नाश्ते के व्यंजन हैं। जिन्हें लोग चाव से खाना पसंद करते हैं। आजकल के युवा वर्गों में हिमाचली पारंपरिक भोजनों के लिए काफी रुझान है और ये सैलानियों को आकर्षित करने का एक अच्छा माध्यम और आए का साधन बन गया‌ है।

विविधता में एकता का प्रतीक हमारा हिमाचल अपनी संस्कृति अपने रहन-सहन और मेलजोल के लिए पूरे विश्व में विख्यात है। प्रधानमंत्री मोदी भी इसे अपना दूसरा घर मानते हैं। इसीलिए हम सभी का ये कर्तव्य बनता है कि हम अपनी संस्कृति को इसी तरह से संजोए रखें। और अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को भी संस्कृति को संजो कर रखने के लिए प्रेरित करें। तभी हमारे इस छोटे से प्रदेश की संस्कृति का परचम पूरे विश्व में लहराएगा।

Tuesday, 1 December 2020

Himachal Mystery: बड़े-बड़े फैसले लेती हैं देव प्रतिमाएं!

हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) को देवभूमि का दर्जा दिया जाता है. यहां पर कई देवी देवता वास करते हैं. हर गांव या इलाके के अपने पारंपरिक इष्ट देवी देवता होते हैं. जहां स्थानीय रीति रिवाजों से उनकी पूजा अर्चना और उपासना की जाती है. किसी भी  घर में शादी विवाह, धार्मिक कार्य या कोई भी शुभ काम शुरु करने से पहले वहां के इष्ट देवता से अनुमति ली जाती है.


देवताओं के दिया जाता है निमंत्रण 
हिमाचल में सभी इष्ट देवी देवताओं को अलग-अलग नाम से भी पुकारा जाता है. जब भी पारंपरिक मेले या त्योहार मनाए जाते हैं, तो उसमें भी इन सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है. जैसे कुल्लू (Kullu) का दशहरा, मंडी (Mandi) की शिवरात्रि, रामपुर का फाग मेला आदि. मान्यता है कि यह देवी देवता कठिन परिस्थितियों में प्रदेश वासियों की रक्षा करते हैं. इनका नाम भर लेने से सारी समस्याओं का निवारण हो जाता है. 


 इस परंपरा और निष्ठा के बारे में हिमाचल के अनुभवी बूढ़े बुजुर्गों से बात की तो उन्होंने बताया कि आम तौर पर देवता का वजन लगभग  90 से 100 किलो तक होता है.  इनको डोली पर सवार करके आगे और पीछे से लोग कंधे पर उठाते हैं. इनका वजन इनका बहुत ज्यादा होता है. लेकिन जब इनको लोग कंधे पर उठाते हैं तो उन्हें बिल्कुल थकान महसूस नहीं होती.




इन वजनी देव प्रतिमाओं को उठाकर लोग पहाड़ी रास्तों पर 10 से 20 किलोमीटर पैदल चल लेते हैं. बिना थकान और दर्द के संपन्न होने वाली देवताओं की यात्रा अपने आप में एक बड़ा आश्चर्य है. 


परंपरा के मुताबिक हर देवता का अपना क्षेत्र होता है. उनके अंतर्गत एक गांव या इलाका आता है. अपने क्षेत्र के निरीक्षण के लिए साल में एक बार देवता निकलते हैं. इसी तरह से लोग बारी-बारी करके इनको कंधे पर सवार करके घर-घर लेकर जाते हैं. कई बार ऐसा भी होता है जब आधुनिक चिकित्सक फेल हो जाते हैं तो इन देवी-देवताओं के द्वारा दिए गए नुस्खे काम आते हैं. यह देवता अपने पुजारियों के जरिए भक्तों से संवाद करते हैं. हर इष्ट देवता का एक पुजारी होता है और वह पुजारी अपना सवाल इष्ट देवता के सामने रखता है. देवता प्रश्न के अनुसार अपना सर हिला कर हां या ना में जवाब देते हैं.  


देवताओं के निर्देशों को सर्वोपरि माना जाता है. गांव के लोगों का मानना है कि घर, परिवार और गांव की समस्याओं से जुड़े बड़े-बड़े फैसले उनकी अनुमति के बगैर नहीं होते.

इलाके की रक्षा भी करते हैं देवता
यह देवी देवता अपने इलाके या गांव के रक्षक भी होते हैं. जब गांव में किसी भूत-प्रेत, रोग-बीमारी या दूसरे तरह की उपरी बाधाएं होने की आशंका होती है. तो देवता उस पूरे प्रभावित क्षेत्र का चक्कर लगाते हैं और अपनी शक्ति से बुरी शक्तियों या दुष्ट आत्माओं को गांव से बाहर निकाल देते हैं. जिसके बाद लोग अपने इष्ट देवता को प्रसन्न करने के लिए भोज का भी प्रबंध करते हैं. रक्षक होने की वजह से ही हिमाचल के बड़े बुजुर्ग देवताओं का सम्मान करते हैं और इनकी पूजा-अर्चना करते हैं.

आधुनिक तकनीक के जमाने में इन बातों पर आसानी से विश्वास नहीं किया जाता. परंतु यही पारंपरिक मान्यताएं और उनका प्रत्यक्ष दर्शन हिमाचल प्रदेश को सभी से अलग, अनूठा और खास भी बनाती है. इन परंपराओं का बरसों से बड़े-बुजुर्ग पालन कर रहे हैं. पीढ़ियां दर पीढ़ियां बीत चुकी हैं. लेकिन परंपराएं जस की तस हैं. आधुनिक और पढ़े लिखे लोग भी इन परंपराओं का अनुसरण करते हैं.

Saturday, 24 February 2018

क्या शीर्षक दूँ?

ऐसे अनुभव होना भी ज़रूरी है इसी से इंसान की सोचने की शक्ति का विकास होता है। कभी सोचा है कि किस तरह जब कभी पंद्रह से तीस मिनट पैदल चलते चलते तुम आपनी मंज़िल तलाश रहे होते हो। एक भी कोई ऐसा इंसान न मिले जो तुम्हे सही  की कहीं तो कोई मिले जिसको देखकर तुम्हें लगे की  यह सही रास्ता बता सकता है या बता सकती है । तुम यूही भटकते रहते हो बस मैं चढ़ने की सोचो तो खिड़की से भी छोटे कुछ बड़े आदमी लटक रहे होते है। किसी तरह उस खटारा से पांच रुपये वाले मैं चढ़ भी जाओ । और तुम्हे आभास होता हे की सब तुमको ही घर रहे होते हैं । पर वो ये तय करने वाले कौन होते हैं कि हमें क्या पहनना चाहिए क्या नही । रूह कांप जाती है एक लड़की की जब कोई ऐसा अनुभव हो। पर भला हो मेट्रो का जो ऐसे समय मे सुरक्षा का का एक प्रतिबिंम बन जाती है । स्मार्ट सीटीज़ बनाने की बातें होती है। मेक इन इंडिया तमाम तरह के  की होर्डिंग हम आये दिन देखतें हे पर इन सभी की सार्थकता तब समाप्त हो जाती है । तुम मन ही मन सोच लेते हो तुम कोई क्रांति तो ला नही सकते। गांधी तो बन ही नहीं सकते।   क्या फायदा दो शब्द लिख लो मन की भड़ास निकाल लो । अगले दिन से फिर उसी दिनचर्य में लग जाओ । शायद ऐसा अनुभव मैं हर उस इंसान को करवाना चाहूँगी जो कहता है कि लडकियां एक खास तरहा का पहनावा पुरुष को रिझाने के लिए करती है। महिला कमांडो हर बस में हर चोराहे पर कितनी बातें सही हो गई । सर्जिकल स्ट्राइक हो गए हैश टैग चलवा दो एक घंटे का प्राइम  टाइम मैं चीख लो चिल्ला लो ।  एक लाख रूपये की मोटी पगार ले लो । हर कहीं राजनितिक रोटियां सेख लो। फिर कहते हैं कि इंडिया इज़ अ देवलोपिंग कंट्री । इंडिया डेवलपड कभी कहलाया ही नहीं  जा सकता जब तक हर वो माँ हर वो राह चलती लड़की सुरक्षित नहीं हें। आज भी कहूगी रूह कांप जाती है दिल्ली जैसे शहर में लड़कियों की ।  ©

Monday, 20 February 2017

"सोसायटी के नाम संदेश"


#AUnsafegirlOfDelhi.

कहाँ से शुरू करू? क्योंकि मुझे खुद  हिम्मत नहीं हो रही की कैसे इसे, सोशलाइज़ करू?शायद मेरा प्रोफेशन मुझे इस बात की अनुमती नहीं दे रहा कि मैं इस बात को अनदेखा कर दूँ। मेरा नाम श्वेता नेगी है और में जामिया मिलिया  इस्लामिया की पत्रकारिता की विधार्थी हूँ।
*Important note* मेने इस पोस्ट को डालने से पहले अपने घर के परिजनों को ब्लोक कर दिया है।

मुझे हालाँकि डरना नहीं चाहिए, पर यही मेरा दुर्भाग्य है क्योंकि यही सोसायटी की नियम है।
 उन्होंने इसे पढ़ लिया तो शायद मुझ पर कई स्तर की रंजिशे लग सकती है। एक बहुत स्टीक सा प्रश्न है  मेरा? क्या मेरे इंस्टाग्राम अकाउंट पर कोई ऐसी फोटो है जिससे इस हबस के पुजारी को बढ़ावा मिला? आखिर क्या कर सकती हूँ मै! ऐसी स्थिति में ? वूमेन हेल्पलाइन पर फोन। जो बिज़ी थी। और जिसका नं ही इनवेलिड था ।

इस बात में कोई अतिश्योकित नहीं है कि दिल्ली! माफ कीजिएगा राजधानी दिल्ली की लड़की अनसेफ थी है और रहेगी!!!!!!
क्या फर्क है 16 दिसम्बर और इसमें? निर्भया का शारिरिक शोषण हुआ, और मेरा मानसिक? आखिर ऐसी कितनी निर्भया बनाएगा यह दिल्ली!
नाजाने कितनी लड़कियाँ हर घंटे साइबरबुलिंग जैसी हैवानियत का शिकार हो रही है। पर वो डर जाती है कि सोसायटी उन्हें ही दोष देगी।
हर लड़की से गुज़ारिश है कि वो खुल कर इन  विषय पर सामने आए। और साहसी कदम उठाए ताकी हर अगली लड़की को स्टोक करने से पहले ऐसे लोग हज़ार बार सोचे।
**दोस्तों इस पोस्ट को इतना शेयर करें की इस तक यह बात पहुँच जाए कि  9.44pm पर इसने अपनी ज़िदगी की बहुत बड़ी गलती की है।**

Tuesday, 9 August 2016

"इंसाफ तेरी ज़रूरत"

सुन के और सोच मात्र से ही मैं सहम और डर सी जाती हूँ। हाथ में वो पवित्र किताब जिसके वो केवल पन्ने पलटे जा रही थी। उम्र लगभग साठ - पैसठ,धीमी सी आवाज़ आती है उठो!! मुझे पैर रखने है, थोड़ी सी घंभीरता से सुनने के बाद मझे समझ आया, और मैं छटपट उठ खड़ी हुई और उनके पैर अपनी सीट पर रखे।विधाता की विधा की इन कश्मकशों में मानो बस उन चार पहियों में अपनी जिंदगी घसीटती चली जा रही थी। कभी कबार वो भगवान भी मुझे अन्यायी, क्रूर और बेदर्द जान पड़ता है। अपने मन की जिज्ञासा को थोड़ा शांत करते हुए मैंने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया कि आप कहाँ जा रहे हो? बड़े धीमें स्वर में जवाब आता है, राजीव चौक। फिर थोड़ी देर बाद शायद मुझमें थोड़ा अपनापन नज़र आते हुए मुझसे कहती है बेटा उनसे कहना  ( मैट्रो आॅपरेटर ) की मुझे राजीव चौक उतार दे। और हँसता हुआ वह चेहरा फिर से पन्ने पलटने में वकीन हो जाता है। थोड़ी सी बात चीत और होने पर फिर मुझे पता चला कि,  वो राजीव चौक से गुरुद्वारे जाएगी और वहाँ पर टौफियाँ बेचैगी, और वो यह काम पिछले पचीस सालों से कर रही है। थोड़ी सी आँखे नम भी हुई, थोड़ी क्रोधित भी हुई पर उससे अधिक मैं बेचैन थी। बेचैनी थी शायद आत्मीयता के उस संबंध की जो करीब चालीस मिन्टों में बन गया गया। आखिर क्यों मेरी मुलाकात उनसे हुई? शायद इन चंद लाइनों के ब्लाॅग के लिए या फिर इतने समय से शांत बैठी मेरी कुंठाओं को जागृत करने के लिए? 

©श्वेता नेगी।

Sunday, 17 July 2016

"पुकार"

बहन रूप में प्यार लुटाती,
माँ बनकर ममता बरसाती।
हर किरदार खूब निभाती,
फिर क्यों कोख में मारी जाती।

परिवार की आन हूँ देश का सम्मान,
फिर क्यों ले जाती है बेरहमी से जान।
ना होगी बेटी तो बहू कहाँ लाओगे,
आने वाले समय में  कदम- कदम पर पछताओगे।

उस कोख में कुछ ही समय तो हुआ था,
फिर क्यों उसे भी पराया करवा दिया।
क्या नहीं थी कोई अभिलाषा मुझसे,
जो वंश की आड़ में अंश को मिटा दिया।

क्या कसूर होता है मेरा जो तुम पराया कर जाते हो,
मुझे जिंदगी के बजाए मौत के आगोश में सुला जाते हो,
डरती हूँ मैं पल-पल ना जाने कब क्या हो,
कब घड़ी के उस पल में अंत मेरा हो।

कितनी कीमती होती है बेटियाँ,
तो फिर क्यों? खटकती है मन को बेटियाँ।
जबकि सबको आभास है इस बात का,
कि बेटों को भी जन्म देती है बेटियाँ।

एक तरफ तो कहते हो,
माँ बहन बेटी और पत्नी है बेटियाँ।
आज समय की रफतार है बेटियाँ,
लक्ष्मी काली और दुर्गा का रूप है बेटियाँ,
तो फिर क्यों आकाल मृत्यु है बेटियाँ।

© श्वेता नेगी


पहाड़ों में ⛰️

कौन कहता है कि सुकून है पहाड़ों में चल चल कर घुटनों का ग्रीस खत्म हो गया है पहाड़ों में यह ऊंचे ऊंचे पहाड़ और उससे भी ऊंची चोट...