Sunday, 17 July 2016

"पुकार"

बहन रूप में प्यार लुटाती,
माँ बनकर ममता बरसाती।
हर किरदार खूब निभाती,
फिर क्यों कोख में मारी जाती।

परिवार की आन हूँ देश का सम्मान,
फिर क्यों ले जाती है बेरहमी से जान।
ना होगी बेटी तो बहू कहाँ लाओगे,
आने वाले समय में  कदम- कदम पर पछताओगे।

उस कोख में कुछ ही समय तो हुआ था,
फिर क्यों उसे भी पराया करवा दिया।
क्या नहीं थी कोई अभिलाषा मुझसे,
जो वंश की आड़ में अंश को मिटा दिया।

क्या कसूर होता है मेरा जो तुम पराया कर जाते हो,
मुझे जिंदगी के बजाए मौत के आगोश में सुला जाते हो,
डरती हूँ मैं पल-पल ना जाने कब क्या हो,
कब घड़ी के उस पल में अंत मेरा हो।

कितनी कीमती होती है बेटियाँ,
तो फिर क्यों? खटकती है मन को बेटियाँ।
जबकि सबको आभास है इस बात का,
कि बेटों को भी जन्म देती है बेटियाँ।

एक तरफ तो कहते हो,
माँ बहन बेटी और पत्नी है बेटियाँ।
आज समय की रफतार है बेटियाँ,
लक्ष्मी काली और दुर्गा का रूप है बेटियाँ,
तो फिर क्यों आकाल मृत्यु है बेटियाँ।

© श्वेता नेगी


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