Tuesday, 7 June 2016

"सपना"

चलते चलते अकस्मात रूक जाना,
खाते-खाते निवाले का मूँह तक ना जाना,
खिलखिलाती हँसी का अचानक से थम जाना,
सिस्कियों में भी उसी का आ जाना,
कुछ ऐसा होता है सपनों में डूब जाना।

रातों में सपनों का आना सभ्य है,
क्या दिन में उसका मुझे रूलाना असभ्य है।
किसी को देखकर मंद मंद मुस्कुराना,
उस मुस्कान में भी प्रतिस्पर्धा का आना,
कुछ ऐसा होता है सपनों में डूब जाना।

भीड़ में खुद को अलग सा पाना,
चलते-चलते चाल का बदल जाना,
उस चाल में अचानक रफ्तार का आना,
बस अपने में ही विलुप्त हो जाना,
कुछ ऐसा होता है सपनों में डूब जाना।

माना की जीतने का शौक रखते है,
फिर भी क्यों परिस्थितियों से डरते है,
जी तोड़ मेहनत कर उस लक्ष्य को लेकर,
चाहे फिर कोई मिले ना मिले तुझे उस पथ पर,
उन परिस्थितियों से भी तुझे बिलकुल ना घबराना,
कुछ ऐसा होता है सपनों में डूब जाना।

4 comments:

  1. घबराइये न आप हो मुश्किल घड़ी अगर
    गुजरेगी ये भी जब घड़ी आसाँ गुज़र गयी।

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    Replies
    1. हा हा वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं है ।

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  2. Beautiful :) Poem dear :)
    God Bless you :)

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